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योऽव॑रे वृ॒जने॑ वि॒श्वथा॑ वि॒भुर्म॒हामु॑ र॒ण्वः शव॑सा व॒वक्षि॑थ। स दे॒वो दे॒वान्प्रति॑ पप्रथे पृ॒थु विश्वेदु॒ ता प॑रि॒भूर्ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo vare vṛjane viśvathā vibhur mahām u raṇvaḥ śavasā vavakṣitha | sa devo devān prati paprathe pṛthu viśved u tā paribhūr brahmaṇas patiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। अव॑रे। वृ॒जने॑। वि॒श्वऽथा॑। वि॒ऽभुः म॒हाम्। ऊँ॒ इति॑। र॒ण्वः। शव॑सा। व॒वक्षि॑थ। सः। दे॒वः। दे॒वान्। प्रति॑। प॒प्र॒थे॒। पृ॒थु। विश्वा॑। इत्। ऊँ॒ इति॑। ता। प॒रि॒ऽभूः। ब्रह्म॑णः। पतिः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:24» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या कर्त्तव्य है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (विश्वथा) सब (अवरे) कार्य्यरूप (वृजने) अनित्य जगत् में (रण्वः) रमण करानेहारा (विभुः) व्यापक (परिभूः) सब ओर प्रसिद्ध होनेवाला (ब्रह्मणः,पतिः) ब्रह्माण्ड का रक्षक है (सः) (देवः) वह दिव्यस्वरूप ईश्वर (शवसा) जल से (महाम्,उ) वितर्करूप महान् संसार को और (देवान्) विद्वानों का वसु आदि को (प्रति,पप्रथे) प्रीति के साथ प्रख्यात करता और (पृथु) विस्तीर्ण (ता) उन (विश्वा) समस्त जङ्गम प्राणियों को विस्तृत करता (इत्,उ) सभी को तुम लोग (ववक्षिथ) प्राप्त होने की इच्छा करो ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो जो परमात्मा अगले पिछले कार्य्य कारणरूप जगत् में परिपूर्ण होके सबका विस्तार करता, सबके लिये सब सुखों के साधनों को देता, वही सबको उपासना करने और मानने योग्य है ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह।

अन्वय:

यो विश्वथाऽवरे वृजने रण्वो विभुः परिभूर्ब्रह्मणस्पतिरस्ति स देवो शवसा महाम् देवान् प्रति पप्रथे। पृथु विश्वा ता तानि पप्रथे तमिदु यूयं ववक्षिथ ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जगदीश्वरः (अवरे) अर्वाचीने (वृजने) अनित्ये कार्ये जगति (विश्वथा) विश्वस्मिन् (विभुः) व्यापकः (महाम्) महान्तं संसारम् (उ) वितर्के (रण्वः) रमयिता (शवसा) बलेन (ववक्षिथ) वोढुं प्राप्तुमिच्छथ (सः) (देवः) दिव्यस्वरूपः (देवान्) विदुषो वस्वादीन् वा (प्रति) (पप्रथे) प्रख्याति (पृथु) विस्तीर्णानि (विश्वा) विश्वानि जगन्ति (इत्) (उ) वितर्के (ता) तानि (परिभूः) परितः सर्वतो भवतीति (ब्रह्मणः) ब्रह्माण्डस्य (पतिः) पालकः ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यः परमात्मा परावरे कार्य्यकारणाख्ये जगति परिपूर्य्य सर्वं विस्तृणाति सर्वेभ्यः सर्वाणि सुखसाधकानि ददाति स एवोपासनीयो मन्तव्यश्च ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो परमात्मा पुढच्या मागच्या कार्यकारणरूप जगात परिपूर्ण होऊन सर्वांचा विस्तार करतो, सर्वांसाठी सुखाची साधने देतो, त्यालाच सर्वांनी मानावे व उपासना करावी. ॥ ११ ॥